इतिहास ग्रंथ महाभारत के अनुसार योगेश्वर श्री कृष्ण महाराज का सही चरित्र



आज भारत में ही नही बल्कि पूरे विश्व में श्री कृष्ण जन्मजयंती मनाई जाती है। उन्हें याद किया जाता है। दुर्भाग्यवश केवल उन्हे याद ही किया जाता है, उनसे कुछ सीखा नही जाता।

महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि "देखो श्री कृष्ण जी का जीवन आप्त पुरुषो के सदृश है, उन्हों ने जन्म से मरण पर्यन्त कुछ भी बुरा किया हो ऐसा नहीं लिखा"

महर्षि दयानंद ने श्री कृष्ण जी के चरित्र को अतिउत्तम कहा है। अर्थात जिस व्यक्ति ने उत्तमता की सीमा को पार कर लिया हो उसे अतिउत्तम कहा है।

फिर आप्त पुरुष यानी जिनकी कही हुई बात प्रमाणित मानी जा सके, जिनका जीवन और वाणी वेद के अनुकूल हो। जिन्होंने संपूर्ण वैदिक विज्ञान को, आध्यात्म और पदार्थ विज्ञान को अच्छी तरह से प्राप्त कर लिया हो। अर्थात जिसने ब्रह्म को भी साक्षात कर लिया है वह है आप्त पुरुष, और जिसके लिए कुछ भी जानने योग्य वस्तु न बचे।

श्री कृष्ण जी महाराज ने पदार्थ विज्ञान और अध्यात्मिक विज्ञान को संपूर्ण स्वरूप से प्राप्त कर लिया था। उन्होंने ब्रह्म को प्राप्त कर लिया था।

महर्षि दयानंद कहते है की श्री कृष्ण जी ने जन्म से मरण पर्यंत कुछ भी बुरा किया हो ऐसा नहीं लिखा। अर्थात महर्षि महाभारत का उल्लेख कर रहे है। महाभारत में कही भी इस प्रकार की बात का उल्लेख नहीं है की जहा पर श्री कृष्ण ने कुछ अधर्म किया हो।

आज दुर्भाग्यवश मिलावटी ग्रंथो ने श्री कृष्ण जी के चरित्र को बहुत बिगड़ा है और उसी कल्पित बातो को सत्य माना जा रहा है। किसी को मूल ग्रंथ महाभारत पढ़ने में रुचि नहीं है।

श्री कृष्ण जी महाराज के बारे में टीवी सीरियल्स या फिल्मों में से नही सीखना चाहिए, महाभारत पढ़नी चाहिए। सही इतिहास ग्रंथो में से सीखा जाता है न की टीवी सीरियल्स या फिल्मों में से नही।

आज श्री कृष्ण के चरित्र का कोई अधर्मी नहीं बल्कि अपने आपको को उनका भक्त बोलने वाले लोग ही सबसे ज्यादा हनन कर रहे है। उनका नाम कोई तथाकथित "राधा" और तथाकथित "गोपियों" से जोड़ा जाता है, जिसका वेद व्यास के महाभारत में कोई उल्लेख नहीं है। इस प्रकार की बाते केवल एक असाधारण महापुरुष के चरित्र को गिराती है।

महाभारत में महाराज युधिष्ठिर का जब राजसूय यज्ञ प्रारंभ हो रहा था तब श्री कृष्ण की अग्र पूजा के समय शिशुपाल आता है और उन्हें बुरा भला बोलने लगता है। लेकिन प्लॉट ट्विस्ट यह है कि उसने एक भी बात वह नहीं कही जो हम अपने आपको उनका भक्त बोलने वाले लोग भक्ति के नाम पर बोल रहे है वह भी बड़े गर्व से।

शिशुपाल जो श्री कृष्ण को अपना घोर शत्रु मानता था उसने श्री कृष्ण को कही चोर नहीं कहा था, श्री कृष्ण को राधा और गोपियों के साथ नाचने रास रचाने वाला नही कहा था, कही कोई चारित्रिक लांछन नही लगाया था, रन छोड़कर भागने वाला भी नहीं कहा था। जो आरोप शिशुपाल तक ने नही लगाए वह आरोप हम लगा रहे है दुर्भाग्यवश।

जब शिशुपाल ने श्री कृष्ण को अग्र पूजा का विरोध किया तब भीष्म पितामह ने कहा कि "है भूपालो सुनो, वेद वेदांग के विज्ञान को जानने में यह केशव अति विशिष्ट है। इस राजसभा में और समग्र भूमंडल में ऐसा कौन है जो इनसे पराजित नहीं हुआ। ऐसा कौन है हो इनसे ज्यादा ज्ञानी है।"

भीष्म पितामह आगे कहते है "मेने इस सभा में बैठे वृद्ध से वृद्ध योद्धा की संगति की है, और मैने कही से श्री कृष्ण के किसी दोष के बारे में नहीं सुना"

अगर महर्षि दयानंद की बातो को नही मानना और भीष्म पितामह की बातो हो भी नहीं मानना हो तो श्री कृष्ण अपने आपके बारे में जो कह रहे है उसे तो मानना चाहिए।

जब अस्वष्ठामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया, और उत्तरा के गर्भ से परक्षित मृत जेसी अवस्था में पैदा हुआ। तब सब निराश हो गए की एक ही वंश को आगे बढ़ाने वाला था अब वह ही नहीं रहा। तब श्री कृष्ण को कहा जाता है की अब आप ही कुछ करे।

तब श्री कृष्ण कहते है की "बेटी उत्तरा, मे कभी मिथ्या भाषण नहीं करता, मेने जो प्रतिज्ञा की है उसे में सत्य करूंगा। और सभी के देखते देखते में इस बालक को जीवित करूंगा।

फिर श्री कृष्ण कहते है "सुनो,मेने कभी भी मिथ्या भाषण नही किया, मेने कभी खेल कूद में भी जूठ नही बोला। यदि सत्य और धर्म मेरे अंदर नित्य प्रतिष्ठित रहे हो (अर्थात उन्होंने सत्य और धर्म को कभी छोड़ा नहीं हो) मेने कभी युद्ध में पीठ नही दिखाई और यह कथन यदि सत्य है तो यह बालक जीवित हो जाए"

श्री कृष्ण कह रहे है की मेने कभी जूठ नही बोला, और हम उनके मुंह क्या बुलवा रहे है "मैया मोरी मैं ने ही माखन खायो"

आज "रणछोड़" नाम बहुत प्रयोग होता है। हमने उनको इस प्रकार का नाम दिया और श्री कृष्ण अपने बारे में कह रहे है की मेने कभी युद्ध में पीठ नहीं दिखाई। निर्णय हमे करना है की इस प्रकार के नाम से उनकी गरिमा बढ़ती है या गिरती है।

वेद व्यास जी ने श्री कृष्ण जी को "विश्वजीत" नाम दिया है। अर्थात जिस योद्धा को सम्पूर्ण भूमंडल कोई पराजित न कर सका हो। "विश्वजीत" विशेषण महाभारत में किसी अन्य योद्धा के लिए के लिए प्रयोग नहीं हुआ श्री कृष्ण के अतिरिक्त।